मेरे गाँव का स्कूल ...

मेरे गाँव का स्कूल ...

"बच्चों के लिए स्कूल जितना ज़रूरी है उतना ही ज़रूरी स्कूलों में बच्चों का होना। गाँव का सरकारी स्कूल तभी अच्छे से चल सकता है जब हम अपने अपने बच्चों को कहीं बाहर न भेजते हुए अपने ही गांव के स्कूलों में भेजें।"

ऐसा मानना है करनाल जिले के गुढ़ा गांव में रहने वाली रीना जी का।

"मैंने अपने गांव के स्कूल को काफी क़रीब से देखा है। यहां बहुत से टीचर्स आये भी और गए भी। कभी ऐसा नहीं कि किसी सुविधा की कमी लगी हो। टाइम से खाना, टाइम से खेलना, टाइम से पढ़ाई- लिखाई और स्कूल के कार्यक्रमों में बच्चों का हमेशा बढ़- चढ़ कर भाग लेना। यूँ तो हम भी अपने बच्चों को बाहर के स्कूल में भेज सकते थे पर गांव का स्कूल ही चुना। मेरे तीनों बच्चे कशीश (9th), अंश (4th), तमन्ना (3rd) गांव के सरकारी स्कूल में ही पढ़ते आये हैं। स्कूल में सब कुछ अच्छा ही चल रहा था फिर गांव में एक संस्था 'वरित्रा फाउंडेशन' के आ जाने से एक अतिरिक्त सपोर्ट मिल गया। गांव में बहुत से परिवार ऐसे थे जो बच्चों को किसी ट्यूशन या कोचिंग आदि जगह पर पर नहीं भेज सकते थे और कुछ परिवार तो ऐसे भी थे जहां बच्चों के माता- पिता ज़्यादा पढ़े लिखे नही थे। ऐसे में वरित्रा फाउंडेशन द्वारा चलाये गए 'लर्निंग सेन्टर' ने ऐसे कई परिवारों की चिंता को दूर करने में मदद की थी।"

"मैं खुद भी ज़्यादा पढ़ लिख नही पायी थी (5th) तो हमेशा से चाहती थी कि मेरे बच्चे खूब पढ़े लिखे और बड़े हो कर कुछ कामयाब बनें। इसके लिए मैं रोज टीचर्स से मिलती, PTM में आती और बच्चों के बारे में जानती तो उनकी तारीफ सुनकर खूब अच्छा लगता था। मैं काफी सालों से स्कूल को स्वच्छ बनाने में मदद करती आई हूं। तो ज़ाहिर सी बात है स्कूल में रोजाना मेरा आना जाना और टीचर्स से मिलना होता ही था।"

"वरित्रा के आने से स्कूल में कई बदलाव देखने को मिले जैसे जो बच्चे अपने मम्मी-पापा के ध्याडी पर जाने के बाद यूँ ही गलियों में घूम- फिरा करते थे अब उनका रोज सेंटर पर जाना होता था। सेन्टर की सबसे अच्छी बात ये लगती थी कि स्कूली पढ़ाई के साथ- साथ बच्चों को रोज नई नई एक्टिविटी भी करायी जाती थी, लाइब्रेरी में अलग अलग कहानियों की किताबें पढ़ाई जाती थी। और मेरा मानना है कि बच्चों के लिए खेल भी उतना ही ज़रूरी है जितना कि पढ़ाई। और बच्चों को लर्निंग सेन्टर की यही बात पसंद आती थी तभी तो सब बैग लेकर अपनी SM दीदी (शिक्षण मित्र) के घर पहुंच जाए करते थे।"


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